सुलगती रेत में पानी की अब तलाश नहीं… मगर ये कब कहा मैंने के मुझे प्यास नहीं…
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले……., ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता!
मुमकिन नहीं की वक़्त मेहरबां रहे उम्र भर ! कुछ लम्हे जीने का अंदाज भी सिखाते है!
यूँ देखनें के कोई असुल नहीं हैं जनाब यूँ निगाहं हमारी , मुकम्मल मर्जी हमारी और बस्स ए सहमी महफिल आपकी ……..!!
मैं आज भी अक्सर तन्हाई में, उसके बालों की महक ढूंढता हूँ। शायद उसकी ख़ुशबू से सन कर मेरी रूह ही कस्तूरी सी हो गयी है ।
दिल में आहट सी हुई, रूह में दस्तक गूँजी, किस की खुशबू ये मुझे मेरे सिरहाने आई।
बहुत ग़ुरूर था, छत को छत होने पर, एक मंज़िल और क्या बनी, छत फ़र्श हो गई !
“इंतज़ार की हद भी अजीब होती है ….. न दरवाज़ा बंद होने देती है न आँखें
धूप का नाम तो वैसे ही बदनाम है वरना जलते तो लोग एक दूसरे से भी कम नहीं है
इकलौती खवाहिश थी की,——– जिंदगी रंग बिरंगी हो,—- और दस्तूर देखिए,—— जितने मिले गिरगिट ही मिले—
हम वक्त रोक लेंगे तुम्हारे लिए… तुम बेवक्त मिलना तो शुरू करो.
मिले थे एक सौदागर इश्क के बाजार में हमें करीब आता देख बोले हम रूह का सौदा नहीं करते
काश की लम्हे भर के लिये रुक जाये ज़मीं की गर्दिशें और कोई आवाज़ ना हो उनकी धड़कनों के सिवा…
दीदार की हसरत लिए चौखट पे तेरे हम.. मर भी गये तो भी कोई सिकवा न करेंगे…!!
दिल मोहब्बत से भर गया,, “साहिब” अब ये किसी पे फ़िदा नहीं होता__!!